Constitution of India Vs Manusmriti by Dr. Laxman Yadav
Constitution of India Vs Manusmriti
संविधान के बनने की प्रक्रिया तो बहुत लंबी और बहुत विस्तृत है | पूरे देश भर के लोगों के अलग-अलग तबके अलग-अलग पृष्ठभूमि और इससे चुन कर के लोग प्रतिनिधि के तौर पर शामिल किए गए | कई अलग-अलग कमेटियां बनती हैं, और उनमें आप गौर करेंगे, कि एक प्रारूप समिति बनती है, और उसकी अध्यक्षता डॉक्टर बीआर अंबेडकर को करने की जिम्मे मिलता है |
और बाकी एक पूरी सभा है, जिसमें आदिवासियों का प्रतिनिधि करने के लिए अगर जयपाल सिंह मुंडा हैं, तो दूसरी तरफ महिलाओं के प्रतिनिधि हैं | फिर दलितों के बीच के प्रतिनिधि हैं | और देश भर के अलग-अलग तबकों के लोग लंबी बहस होती है, दो साल 11 महीने 18 दिन हम कहते हैं उसमें हर एक मुद्दे पर | यानी गौर करें कि संविधान की प्रस्तावना में पहला शब्द क्या होगा, यानी भारत का संविधान शुरू कहां से होगा, इसको लेकर बहस होती है | और यह बहुत दिलचस्प वाकया है और जो मौजूदा हालात हैं इसमें इस बात का जिक्र करना बहुत जरूरी है, कि जब सुझाव माने मांगे गए तो एक मशवरा यह था कि भगवान के नाम से शुरू किया जाए | एक मशवरा था कि खुदा के नाम से शुरू हो | किसी भी रिलीजियस टर्म से शुरू हो | डॉक्टर अंबेडकर ने इस पर कहा कि वोटिंग होगी | और वोटिंग में यह सारे जो रिलीजियस टर्म थे यह हारते हैं, और WE THE PEOPLE OF INDIA यानी हम भारत के लोग, इससे संविधान शुरू होता है | नागरिकता क्या होगी अधिकार क्या होंगे मूल अधिकार कर्तव्य | देश असल में नया भारत जो बनना है, व कैसे बनेगा इसका रास्ता क्या होगा जितनी भी खाया गैर बराबरी है इस मुल्क में अब तक रही है, इनको कैसे हम दूर करेंगे और एक मुकम्मल मुल्क कैसे बनाएंगे इसका एक पूरा दस्तावेज है भारत का संविधान | इसलिए मैं कहता हूं कि भारत का संविधान बहुत बहुत मेहनत से बहुत दूरदर्शिता से और बहुत जिम्मेदारी से बनाया गया एक दस्तावेज है |देखिए औपनिवेशिक मानसिकता की के सवाल पर पहली टिप्पणी तो यह किया जाए कि जब पूरा मुल्क आजादी की लड़ाई लड़ रहा था कि औपनिवेशिक सत्ता को इस देश से बेदखल करना है |
और हमें जम्हूरियत को इस देश के लोगों के लिए फिर से खड़ा करना है | उस समय यह सारे लोग जो आज वकालत कर रहे हैं इस बात का कि संविधान औपनिवेशिक मानसिकता का है | वे सारे लोग उनकी विचारधारा के लोग वे सारी ताकतें औपनिवेशिक ताकतों के साथ गोल बन थ | कोई उनके लिए मुखरी कर रहा है कोई उनकी पेंशन पर जी रहा है कोई कोई उनके लिए कह रहा है कि हम यहां के लोगों को समझाएंगे कि वह आपका विरोध ना करें | कोई भारत छोड़ो आंदोलन हो रहा है कोई जंगे आजादी का आंदोलन हो रहा है तो उसमें साथ नहीं खड़ा है | और आज वो कह रहे हैं कि भारत के संविधान में औपनिवेशिक पुट है तो एक तो यह इसकी टिप्पणी है एक प्रतिक्रिया यह है दूसरी बात यह है कि डॉक्टर अंबेडकर या पूरी संविधान सभा इस बात की पड़ताल करती है कि जैसे दुनिया अपने उसूलों पर अपने संघर्षों से जहां तक पहुंची है, अगर हम उस समय कोई एक नया दस्तावेज बना रहे हैं, तो हम दुनिया भर की अच्छी चीजों को लेकर के वहां भारत की अपनी बुनियादी जो जरूरत हैं, यहां की जो परंपरा है रवायत है इनसे जोड़ करके एक मुकम्मल दस्तावेज बनाए | तो इसमें जो न्याय का पक्ष है, समता का पक्ष है, कल को तो यह भी कहा जा सकता है कि भाई लिबर्टी फ्रेटरनिटी और इक्वलिटी का टर्म तो फ्रेंच रिवोल्यूशन से आया है, तो हम कहेंगे नहीं भाई वो फ्रेंच रिवोल्यूशन से मॉडर्न रा में आया उसके पहले हमारे यहां भी बहुत अलग अलग तरह कर है बुद्ध हमारे यहां भी रहे जस्ट का कांसेप्ट हमारे यहां भी है तो ऐसा कोई कह दे कि वो औपनिवेशिक है | मेरा मानना है कि औपनिवेशिक नहीं है वो इस देश की नब्ज को पकड़ कर के और यह बात वो लोग भी कहते हैं मुझे हास्यास्पद लगता है जो कहते हैं कि दुनिया ग्लोब है परिवार है, वासुदेव कुटुंब कम तो फिर अब कुटुंब में से कोई चीज ली गई है तो अप निवेश कैसे है मेरा मानना है कि व भारत का संविधान यहां के लोगों की नुमाइंदगी करता है और इवन भारत का संविधान यह भी जगह देता है, कि अगर आपको समय के हालात के बदलने पर कोई चीज बदलने की गुंजाइश हो तो इन इन प्रक्रियाओं से आप भारत के संविधान में कुछ संशोधन कर दीजिए | आप आप यह संविधान इतना लचीला है इतना विस्तृत है सबको अधिकार देता है कर्तव्य बताता है सबकी जगह सुनिश्चित करता है | इसलिए य ये टिप्पणी उथली है मैं इस पर यह हास्यास्पद में इसको मानता हूं |इतिहास में हम अगर अपने देश के इतिहास को पढ़ेंगे पढ़ाएंगे और वाकई जो वास्तविक इतिहास है उसे पढ़ेंगे पढ़ाएंगे तो हम ये कहेंगे कि औपनिवेशिक सत्ता गुलामी जो थी उससे आजादी1947 में मिल गई | लेकिन मैं फिर से कह रहा हूं कि जो लोग अपनि वेसिक ताकतों के साथ थे व क्यों मानेंगे कि भारत में लोकतंत्र 1950 में लागू हो गया? तो जैसे लोकतंत्र चाहिए था उसके लिए तो 26 जनवरी 1950 में लागू हो गया | जो लोकतंत्र में भरोसा ही नहीं रखता अपने ख्याल के जरिए अपने संगठनों के जरिए, वो बांटने में भरोसा रखता है व लोगों को लड़ाने में भरोसा रखता है, व नहीं मानता था वो एक धर्म एक जाति मैं बारबार कह रहा हूं धर्म ही नहीं धर्म दिखाने का चेहरा है, उसके पीछे एक जाति है एक तबका है पुरुष है, कास्ट मेल है जमनी का ,जो एक विचार है जिसका प्रतिनिधित्व आरएसएस करता है | वो हमेशा यह मानता है कि यह संविधान हमारा नहीं है क्योंकि इसने तो सबको बराबर का हक दे दिया | इसने सबको बराबर की एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद अयाज ना कोई बंदा रहा ना कोई बंदा नवाज भारत का संविधान तो कुछ कुछ वो कर दिया | और उनकी फित्र थी कि नहीं भाई कोई बड़ा होगा बाकी सब छोटे होंगे | आरएसएस के मतलब आरएसएस उसका प्रतिनिधित्व करता है बाद के दिनों में 1925 से | उसके पहले भी ऐसी ऐसे विचार और ख्याल के लोग रहे हैं वो भारत के संविधान को नहीं पसंद करेंगे | उनको भारत का संविधान इस बात में खराब लगेगा कि हम तो जिसको पानी नहीं पीने दिए जिसको साथ में बैठने नहीं दिए उसको संविधान कह रहा है कि तुम्हारे वोट की भी एक कीमत मेरे वोट की भी एक कीमत | इसके वोट से प्रधानमंत्री चुना जाएगा सरकार बनेगी | इससे भी बनेगी जिन्होंने कहा कि आपको शिक्षा का अधिकार नहीं है भारत का संविधान क कोई भी पढ़ सकता है | जो यह कह रहे थे कि जमीन खरीदने का मालिकाना हक सबको नहीं होगा भारत का संविधान कह रहा है कि कोई भी खरीद सकता है आदिवासी इलाको और उन सबको छोड़ के | इसलिए भारत संविधान को कैसे कबूल करेंगे | इसलिए वो उनके उनके लोग यह कहते हैं कि भारत 2014 में आजाद हुआ | इसलिए वो लोग चाहते हैं कि भारत के संविधान को बदल दिया जाए | यह संविधान सबको बराबर करता है हमें ऐसा संविधान नहीं चाहिए | हमें मनुस्मृति वाला संविधान चाहिए जिसमें कोई बड़ा कोई छोटा हो कोई कोई चलाने वाला हो बाकी सब चलने वाले हो | संविधान कहता है कि हर एक शख्स जनता है | भारत का रहने वाला हर एक नुमाइंदा अगर इन शर्तों को मानता है तो वह भारत का नागरिक है और वह बराबर है | इनका मनुस्मृति कहती है कि नहीं सब बराबर नहीं | एक तबका होगा जो किसी की हत्या कर तो भी उसका गुनाह माफ होगा और बाकी लोग अगर मुख्य सड़क पर चल रहे हैं पानी पी लेंगे तो उनको सजा मिलेगी | एक तबका होगा जो पाखंड अंधविश्वास फैलाए फिर भी पूजनीय होगा मंदिर में जाएगा दान दक्षिणा खाएगा एक तबका होगा जिसे मंदिर में नहीं जाने देंगे तालाब का पानी नहीं पीने देंगे और यह कोई बहुत हजार साल पीछे तक मत जाइए इस सच को देखने के लिए | इंद्र मेघवाल बच्चा राजस्थान का अभी चार छ महीने पहले 2022 का भारतीय है | रोहित वला 20वीं 21वीं सदी का भारत है रोहित बमला का | पायल तड़वी का इंदर मेघवाल का हाथ रस के बेटी का | दूल्हा अगर घोड़ी पर जाएगा मारा जाएगा ये 21वीं सदी का भारत है कोई बहुत पुरानी बात भी नहीं कर भारत का संविधान अभी पहुंच रहा है ताकि ऐसी घटनाए कम हो लेकिन जो चाहते हैं कि भारत का संविधान बदल दिया जाए ताकि ऐसा ही भारत फिर से बने तो उन पर क्या ही टिपड़ी की जाए | मैं चाहूंगा कि संविधान थोड़ा और मजबूत हो ताकि उनको समझाया जा सके कि यह मुल्क क्या है |
पक्ष भी चुनना अगर हो तो किसी एक शर्त में रखता हूं | मनुष्य होने का इंसान होने का कि, उस व शख्स इंसान है कि नहीं य इस बात से तय होगा कि उसके जहन में क्या ख्याल है | मिसाल के तौर पर किसी के दुख में व दुखी है कि नहीं किसी के सुख में वह सुखी है कि नहीं इससे राष्ट्र बनता है | एक राष्ट्र केवल भूगोल से नहीं बनता | उनके लोगों से बनता है. और लोग जब होते हैं तो सब लोग होते हैं मैं मैं किसी भी विचार ख्याल या मैं कहूंगा कि आपको आरएसएस की पैरवी करनी है या बीजेपी के अच्छाई को देखना है | मुझे लगेगा कि मैं जैसे एक एक शर्त अगर रख दूंगा कि वो इंसान है कि नहीं इसका पैमाना यह हो जाएगा कि वो जाति धर्म भाषा क्षेत्र इन सब पर बाट चाहते जोड़ना चाहते हैं | तो जो बांटना चाहेगा उसकी एडवोकेसी मैं कर ही नहीं सकता | क्योंकि मैं भारत के संविधान को जीने के कोशिश करता हूं मैं बुद्ध से लेकर के कबीर रैदास पलटू दादू भीखा बुल्ले शाह बाबा फरीद को पढ़ता हूं जीता हूं | मेरे इतिहास के सिलेबस से लेकर के मेरे स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय से लेकर मेरे मेरे परिवार में मुझे यह तहजीब दी गई कि, Be a Human Being इंसान बने | बुध कबीर से लेकर के वह पुले अंबेडकर पेरियार तक आता है जब भारत के संविधान तक आता है तो शर्त यह रखता है कि आप इंसान बने और इंसान बनने का तकाजा केवल इतना है कि आप हिंसा को सेलिब्रेट नहीं करेंगे | आप दंगे की पॉलिटिक्स नहीं करेंगे आप जातियों के बीच खाई को बढ़ाएंगे नहीं | आप बराबरी की दुनिया बनाना चाहेंगे | इसमें सब खूबसूरत ढंग से एक दूसरे से मिल कर रहे हैं | जो इसको नहीं जिसका ख्याल य नहीं है उसकी एडवोकेसी मुझसे नहीं
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