Which is Older Buddhism or Hinduism - पुराना धर्म कौनसा है बुद्धिज़्म या हिन्दुइस्म?
Which is Older Buddhism or Hinduism - पुराना धर्म कौनसा है बुद्धिज़्म या हिन्दुइस्म
Facts No 1. हिंदू शब्द पुराना है या बुध शब्द
क्यूंकि हिंदू शब्द फारसी शब्दावली से लिया गया है और पारस यानी कि ईरान में इसे चोर उचक्के या फिर वहां के परित्यक्त लोगों के लिए यह इस्तेमाल किया जाता रहा है | वहीं भारत में किसी भी धार्मिक ग्रंथ में हिंदू शब्द आया ही नहीं है | अगर आया होता तो एक बार हम कह सकते हैं कि यह शब्द पुराना होगा | लेकिन यह हिंदू शब्द किसी ब्राह्मण ग्रंथ में भी नहीं पाया गया है | कुछ लोगों ने फेक न्यूज़ फैला रखी है कि सातवीं सदी में जब ह्वेनसांग भारत में आए थे तो उन्हें हिंदू शब्द इस्तेमाल किया है जो की पूरी तरह से फेक न्यूज़ है | मैं आपको ह्वेनसांग के हिंदी अनुवाद की गई किताब खोल कर दिखा देता हूं उसमें साफ तौर पर लिखा है प्राचीन काल में इसका नाम “सिंटू और हीनताव” था परन्तु अब शब्द शुद्ध उच्चारण इन्तु है |
और फिर यह इन्तु का मतलब चीन में चंद्रमा सामान बताते हैं | तो यहां देखिए इनने पूरी तरह से डाउट क्लियर कर दिया है किसका प्राचीन नाम सिंटू और सिंटू हिंदू शब्द की तरह नहीं है | सिंधु जैसा लग रहा है और हीनताव नाम बताया जा रहा है जो कि हिंदुस्तान नहीं है बल्कि हियान से ज्यादा तालुकात रख रहा है | दूसरी बात कि इनमें यह भी लिख दिया कि अब इसका शुद्ध उच्चारण इन्तु है लेकिन कहीं भी हिंदू शब्द इस्तेमाल नहीं किया हालांकि हंसों की किताब में बुद्ध और बुध के बारे में ही पूरी की पूरी किताब लिखी गई है | इससे यह भी साबित होता है कि हिंदू शब्द पुराना नहीं है | तो फिर हिंदू शब्द कब आया? 11 वीं सदी में जब भारत आते हैं तो वहीं अपनी किताब में बार-बार हिंदू शब्द का प्रयोग करते हैं | लेकिन उनकी तरफ से प्रयोग किया गया था भारतीयों के लिए भारतीय खुद भी अपने को हिंदू नहीं करते थे | जहां तक बुध शब्द की बात है तो सम्राट अशोक के शिलालेख जो कि 2250 साल से भी ज्यादा पुराने हैं उन पर भी बुद्ध शब्द बार-बार और धड़ल्ले से इस्तेमाल हुआ है | तो इससे साबित होता है कि शब्द रचना में भी हिंदू शब्द सबसे पुराना कतई नहीं है |
Fact no 2- हिन्दू धर्म / सनातन धर्म या बुद्ध धर्म
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि हिंदू शब्द भले ही पुराना नहीं हो लेकिन उनका धर्म का नाम सनातन धर्म है और यह सनातन धर्म बौद्ध धर्म से ज्यादा पुराना है | चलिए इसका भी फैक्ट चेकिंग कर लेते हैं | सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि सनातन धर्म का मतलब क्या है | सनातन गुण वाचक शब्द है जिसका मतलब होता है पुराना | यानी कि हिंदू धर्म जिसे ब्रह्मण धर्म कहना ज़्यादा उचित रहेगा क्योंकि हिंदू शब्द भारत में तो कभी पाया ही नहीं गया | इसलिए यहां पर कंफ्यूज ना हो जाएगा अगर मैं ब्राह्मण धर्म भी कहूं तो | यह ब्राह्मण धर्म/सनातन धर्म कहना अपने आप में ही कमजोर तक हो जाता है | क्योंकि यह किसी धर्म का नाम नहीं बल्कि पुराना होने का संबोधन है | सवाल यह है कि धर्म का नाम क्या है? वहीं दूसरी तरफ गौतम बुध का जन्म भले ही यीशु से 600 साल पूर्व के करीब में बताया जाता है | लेकिन उन्हें जो मार्ग दिया उसको बुद्ध धर्म की स्थापना नकहा के धम्म चक पवतम कहा गया है, कि पहले से जो सनातन परंपरा चली आ रही थी जिसे समन कहा जाता था उसी परंपरा की 6 तीलियों के चक्र में औ 2 जोड़ते हुए अष्टांगिक मार्ग देते हैं और इसीलिए बुद्ध मार्ग को इस धम्मो सनातनओं कहा गया | यानी कि बुद्ध मार्ग सनातन धम्म है | इस पॉइंट पर भी हम देखते हैं कि सनातन धर्म नहीं बल्कि सनातन धम्म है |
Fact no 3 - धर्म शब्द पुराना है या धम्म
शब्द?
क्यूंकि confusion का सबसे बड़ा कारण ही शब्द रचना ही है | इसीलिए इसीलिए यह जानना बेहद ही रोचक है कि 9 वीं सदी पूर्व धर्म शब्द पाया ही नहीं गया | इसीलिए ब्राह्मण धर्म का है यह हिंदू धर्म का है या धर्म के लिए धर्म युद्ध कहें यह सारे शब्द ही 9 वीं सदी के बाद ही अस्तित्व में आए हैं | आप 10 वीं सदी पूर्व के भारत के किसी भी शिलालेख को उठाकर देख लीजिए किसी पर भी धर्म शब्द लिखा हुआ नहीं मिलेगा | उल्टे धम्म लिखा हुआ मिलेगा | चाहे वह सम्राट अशोक के शिलालेख हो या गुप्त वंश के शिलालेखों या हर्षवर्धन या पाल वंश के हैं | यहां तक कि 10 वीं सदी पूर्व जो भारत की धम्म लिपि थी उसमें भी धर्म शब्द लिखा ही नहीं जा सकता है | उसमें भी धर्म ही लिखा जाता है यानी कि इस पॉइंट पर भी जो ब्राह्मण धर्म है वह काफी नया रह जाता है धम्म की तुलना में |
Fact no 4- ब्राह्मण शब्द पुराना है या बुध
शब्द ?
आपको जानकारियां काफी हैरानी होगी कि यीशु पूर्व बुद्ध शब्द तो कई शिलालेखों पर मिलता है लेकिन ब्राम्हण शब्द किसी भी शिलालेख पर
नहीं मिलता | यहां तक कि जिस Pushyamitta Shunga को ब्राम्हण प्रसारित किया गया है उसने
भी तो खुद को छत्रिय लिखवाया नहीं ब्राह्मण लिखवाया | Basically ब्राह्मण शब्द पाया
ही नहीं गया यीशु पूर्व में | यीशु से 310 साल पूर्व जब Magesthanes भारत आए थे तो उन्हें
भी Brachman शब्द यूज किया शरमैन शब्द यूज किया | लेकिन कहीं भी उन्हें ब्राह्मण शब्द
इस्तेमाल नहीं किया | उनके दूसरी पीढ़ी में सम्राट असोक थे उन्हें भी अपने शिलालेख
में कहीं भी ब्राह्मण शब्द नहीं इस्तेमाल किया | कुछ लोग उनके शिलालेख पर जो बम्हन
शब्द आया है उसी में से बम्हन को ब्राह्मण कहते हैं | अब सोचने वाली बात यह है कि अगर
उस समय ब्राम्हण शब्द होता तो सम्राट अशोक बम्हन क्यों लिखवाता ब्राह्मण शब्द ही लिखवादेते
| यानि की ब्राह्मण शब्द की रचना यीशु पूर्व
में कभी थी ही नहीं | वह काफी बाद में आई है और जब संस्कृत का जन्म हुआ है जो पाली
को संस्कारित की गई है ब्राह्मण शब्द आया है | तोह शब्द रचना में भी बुद्ध शब्द सबसे
पुराना ही साबित होता है |
Fact no 5- ब्राह्मण ग्रन्थ या बुद्ध ग्रन्थ
ब्राह्मण क्षत्रिय और वर्ण व्यवस्था के शब्द रिग वेद के 10 Mandala 90 Sukta 12 मंत्र में आता है | इसीलिए ऋग्वेद बुद्ध से पुराना है | और दवा यह भी है कि ऋग्वेद बुध से पुराना है | इसीलिए ब्राह्मण धर्म भी बुद्ध से पुराना है | आइए इस दावे की भी फैक्ट चेकिंग कर लेते हैं | मुंह से लोग कितनी भी गप्पे बाजी कर ले लेकिन माना सिर्फ सबूत का ही जाता है | जैसा कि आप जानते होंगे कि कहीं भी किसी भी शिलालेख पर ऋ छा त्र घ्यां इत्यादि शब्द पाए ही नहीं गए हैं नहीं संस्कृत की कोई शब्दावली पाई गई है 10 वीं सदी से पूर्व | तू जब द्विवेदी छत्रिय का छात्र इत्यादि शब्द ही 10 वीं सदी से पूर्व नहीं पाए गए तो फिर वर्ण व्यवस्था और रिग वेद ऋषि यह सारे शब्द 10 वीं सदी से पूर्व कैसे पाए जाएंगे | और बुद्ध से पहले कैसे पाए जाएंगे इसके लिए सबूत की जरूरत है जिसका इनके पास कोई सबूत नहीं है | यानी कि जो लोग भी ऋग्वेद को पूरा ना बताने का दावा करते हैं वह सिर्फ कोरी गप्पेबाजी है | यहां तक की यूनेस्को में जो नॉमिनेशन हुआ है ऋग्वेद को पुराना बताने का उसमें भी यही ठोका गया है कि वह 3500 साल पुराना है 3200 साल पुराना है लेकिन सबूत दिखाया गया है सिर्फ 1464 AD का एक भोजपत्र यानी कि सबूत के तौर पर भी 550 साल से ज्यादा पुराना ऋग्वेद का कोई प्रमाण नहीं है | Alberuni जब भारत आए थे तोह उन्होंने साफ तौर पर लिखा है कि उनके समय तक किसी भी ब्राह्मण ने वेद को नहीं लिखा था उल्टी वह मना करते थे लिखने से | अब इस बात को एक उदाहरण से समझिए उससे आपको पूरी तरह से क्लियर हो जाएगा कि वेद पुराना है या नहीं है | गांव में दो व्यक्ति हैं एक व्यक्ति की मेहनत सबको दिखती है उसके पूर्वजों की भी मेहनत सबको देखती है | उसके पूर्वज शिलालेख पर अपनी बातों को लिखते आए हैं | वही दूसरा व्यक्ति के पास कोई सबूत नहीं है | लेकिन वह खूब गप्पे हांक रहा है कि नहीं उसके पूर्वज तो इस पहले व्यक्ति के पूर्वज से भी ज्यादा पुराने हैं | वह लिखते पढ़ते नहीं थे वह मुँह से ही गपोड़कर ले आते थे | तो सवाल यह है कि किसकी बात सच मानी जाए? जिसका सबूत है या फिर जो सिर्फ मुंह से ही गप्पे हांक रहा है | तो सीधी सी बात है कि जो मुंह से गप्पे हांक रहा है उसकी बात कोई नहीं मानने वाला और यही हाल ऋग्वेद का है | अलबरूनी 11 वीं सदी में ऋग्वेद का नाम पहली बार मेंशन करते हैं और उनसे पहले ऋग्वेद शब्द पाया ही नहीं गया | यहां तक कि ऋ शब्द ही नहीं पाया | यानी की भाषा और लिपि की जो आधार है उससे साफ पता चलता है कि ऋग्वेद सिर्फ 11 वीं और 10 वीं सदी के समय में ही अस्तित्व में आया था | तो सबूतों के आधार पर भी यहां भी ब्राम्हण क्षत्रिय वर्ण व्यवस्था जो कि ब्राह्मण धर्म की ओर है वह भी बुद्ध मार्ग से पुरानी कतई नहीं साबित होती |
Fact no 6- संस्कृत भाषा या पाली भाषा
ब्राह्मण धर्म को पूराना बताने वाले हमेशा ही संस्कृत को भी पुराना बताते हैं ब्राह्मणों की भाषा बताते हैं और पाली को बौद्धों की भाषा बताते हैं, जैनो की भाषा बताते हैं | तो यहां पर सवाल यह उठता है कि पाली पुरानी या संस्कृत पुराना | चलिए इसकी भी फैक्ट चेकिंग कर लेते हैं | क्योंकि पाली भाषा में लिखे हुए सैकड़ों शिलालेख मिल चुके हैं | यीशु से ढाई सौ साल पूर्व के सम्राट अशोक के शिलालेख मिले हैं जो पाली प्राकृत में लिखे हुए हैं | और उसकी लिपि धाम में लेती है उनसे पहले बुध के समकालीन प्रसनजीत थे उनके नाम का भी शिलालेख मिल चुका है जो कि धम्म लिपि में लिखा हुआ है और पाली भाषा में है | लेकिन संस्कृत के शिलालेख 9 वीं सदी पूर्व पाए ही नहीं गए हैं | क्योंकि संस्कृत की लिपि देवनागरी है और संस्कृत को देवनागरी लिपि में ही अच्छी तरह से लिखा जा सकता है | देवनागरी लिपि से पूर्व धम्म लिपि प्रचलन में थे और उसमें संस्कृत को लिखा ही नहीं जा सकता | हालांकि सोशल मीडिया में यह अफवाह फैलाई गई है कि दूसरी सदी का जूनागढ़ लेख संस्कृत में है जो की पूरी तरह से फेक न्यूज़ है | अगर आप से पढ़ना चाहते हैं वह भ्रम का पुलिंदा में है उसका भी लिंक डिस्क्रिप्शन में दे दिया है वहां से जाकर आप पढ़ सकते हैं | और संस्कृत की बात करें तो उसके महत्वपूर्ण अक्षर हैं जैसे ऋ छा त्र घ्यां के अनुसार यह सारे Letters धम्म लिपि में लिखे ही नहीं जा सकते | यानी संस्कृत का अस्तित्व 9 वीं सदी से पूर्व था ही नहीं | यानी संस्कृत का अस्तित्व तभी आया जब देवनागरी लिपि प्रचलन में आए यानी 9 वीं सदी के बाद | इसीलिए सारे ब्राह्मण ग्रंथ देवनागरी लिपि में ही लिखे हुए मिलते हैं | तो यहां भी पाली बाजी मार ली जाती है यानी बुध मार्ग ब्राह्मण धर्म से ज्यादा प्राचीन साबित होता है |
Fact no 7- मूर्ति कला
क्यूंकि आज ब्राह्मण
धर्म में मूर्तियों की खूब पूजा हो रही है | और बौद्ध मार्ग में भी मूर्ति कला है कि
मूर्तियों की पूजा उसमें नहीं होती है | तो यह भी जानना रोचक होगा कि दोनों में से
किसकी मूर्ति कला प्राचीन है | अंग्रेजों के समय की अगर बात करें तो उस समय तक सिंधु
घाटी सभ्यता का कहीं भी अता पता नहीं था | क्यूंकि भारत में बुद्धिस्ट लगभग खत्म हो
चुके थे | इसीलिए उनके उसका कुछ भी अता-पता नहीं था लेकिन ब्राह्मण अस्तित्व में थे
| तो उन्हें कहीं भी सिंधु घाटी सभ्यता का कोई जिक्र किया उनका वहां पर कोई प्रमाण
मिला | उलटे वह खुद को साबित करने लगे चाहे तिलक हो नेहरू हो केदारनाथ पांडे हो या
फिर स्वामी दयानंद सरस्वती | ये लोग खुदको कोई तिब्बत से आया हुआ बताने लगे, कोई Mediterranean
से आया वह बताएं लगा तो कोई खुद को उत्तरी और दक्षिणी पूर्व यानी कि इन लोगों ने खुद
को भारत में आना सिंधु घाटी सभ्यता के बाद का बताया यानी इनका सिंधु घाटी सभ्यता से
कुछ लेना देना ही नहीं था | तो भारत में जो मूर्ति कला पाई गई है सबसे पुरानी आज की डेट
में वह सिंधु घाटी सभ्यता में पाई गई है जिसमें 6 से 8 इंच के छोटे-छोटे मूर्तियां
पाई गई है खिलौने के आकार की | सोशल मीडिया में यह भी फेक न्यूज़ है कि उन्हें 6 इंच
8 इंच की छोटी-छोटी खिलौनों को दिखाकर कोई शिवलिंग प्रसारित कर देता है तो कोई उसी
में ब्रह्मा विष्णु महेश खोल देता है जो की पूरी तरह से फेक न्यूज़ है | क्यूंकि सिंधु
घाटी सभ्यता की जो तकनीक थी वही बुद्ध मार्ग में ट्रांसफर हुई थी | जैसे कपड़े पहने का
तरीका सिंधु घाटी सभ्यता में जो स्वास्तिक चिन्ह इस्तेमाल होते थे वहीं बुद्ध मार्ग में
इस्तेमाल होना | जो स्तूप रचना थी बुद्ध मार्ग में वही स्तूप रचना सिंधु घाटी सभ्यता में भी पाई गई | जो पीपल
के पत्ते इस्तेमाल होते थे सभ्यता में वही बुध मार्ग में इस्तेमाल होते थे जो इस्तेमाल
होती थी सिंधु घाटी सभ्यता में वही मौर्य काल में पाई गई सिंधु घाटी सभ्यता में पाया
गया वहीं बौद्ध मार्ग में पाया गया जो वहां पर पशुओं के साथ एक व्यक्ति ध्यान मुद्रा
में है वही मुद्रा बोध मार्ग में भी पाई जाती है | और पशु प्रेम पाया जाता है | वहां
पर जो 6 तिलिओन की धम्म चक मिला वही बुद्ध मार्ग में 2 तिलि और ऐड होकर अष्टांगिक मार्ग
यानी कि 8 तीलियों का चक मिलने लगा | और दूसरी तरफ ब्राह्मण धर्म में यह बताया कि वह
मूर्ति पूजा नहीं करते थे | मूर्ति पूजा तो यह 10 वीं सदी के बाद शुरू किए हैं मंदिर
बनाकर | इससे भी यह साबित होता है कि ब्राह्मण अगर यह खुद को विदेशी भी बताते हैं और
यह तथाकथित अपने फर्जी वैदिक काल को भी बुद्ध से पहले स्थापित करते हैं तू भी यह मूर्ति
कला को सपोर्ट नहीं करते | यानी मूर्तिकला भी बुद्ध मार्गी और सिंधु घाटी सभ्यता की देन
है | जिसका ब्राह्मणों से कुछ भी लेना देना नहीं है | तो यहां भी बुद्ध मूर्ति कला में
भी ब्राह्मण धर्म से काफी प्राचीन साबित होती है | यहां पर एक दूसरी theory है, कि
नहीं ब्राह्मण विदेशी नहीं है बल्कि भारतीय ही है | इसमें भी ब्राह्मण धर्म मार्ग से काफी पीछे आता है धर्म सीधे-सीधे आठवीं सदी के
बाद ही साबित होता है शैव शाक्त और वैष्णो मार्ग के रूप में मूर्ति कला पाई जाती है
| चाहे विदेशी मान लीजिए या फिर देसी मान लीजिए दोनों ही theory में मूर्तिकला में
ये बुद्ध मार्ग से पीछे ही रह जाते हैं और बुद्ध मार्ग ही प्राचीन साबित होता है |
Fact no 8- ब्राह्मण धर्म का अस्तित्व कब से है और बुद्ध मार्ग का अस्तित्व कब से है
यह बहुत ही मजेदार पॉइंट है कुछ लोगों का मानना है क्योंकि बुद्ध धर्म 2600 साल से ही है इसीलिए ब्राह्मण धर्म उससे ज्यादा पुराना है क्योंकि इसका कोई फाउंडर नहीं है | तो यहां पर भी आपको निराशा हाथ लगेगी क्योंकि आज का जो ब्राह्मण धर्म है उसके मुख्यतः तीन सेट है | सेव पंथ वैष्णव पंथ और शाक्त पंथ | यह तीनों ही पंथ आठवीं सदी के बाद आए हैं | जबकि बुधवार सनातन मार्ग है और धम्म चक पवतन से अष्टांगिक मार्ग 2600 साल पूर्व से आ रहा है उसके मार्ग भी कई पंथ में बैठते हैं | जिसमें से प्रमुख पंथ थे हीयान - महायान और यही फिर आगे चलकर बाद में वज्रयान में भी एक्सेप्ट बनता है | और यही वज्रयान में तरह-तरह की मूर्तियां अलग-अलग एक्सपेरिमेंटल रूप से बनने लगती है जिसमें ऑल खेतेश्वर बुद्ध की कल्पना आती है तारा देवी की कल्पना आती है इसमें मूर्तियों के कई सारे सर होते हैं कई सारे हाथ होते हैं और हाथों में कोई ना कोई प्रतीक चिन्ह होता है जैसे किसी आंख में बज रहा है किसी में फंसा है किसी में तलवार भी हो सकता है किसी में शंख हो सकता है | और यही वज्रयान की शाखा में से आठ वीं सदी में एक प्रश्न बहुत जिसका नाम शंकराचार्य था | वह खुद को अलग कर लेता है और अपना वह एक अलग मार्ग चलाने लगता है जिसको आज शैव पंथ कहा जाता है | और जो अद्वैतवाद सिद्धांत पर आधारित है | आप देख सकते हैं इस प्रबोध की मूर्ति बुद्ध के आकार की ही मिलेगी और इसके अनुयाई जितने भी बुद्ध मार्ग में स्तूप थे छोटे-छोटे, उनपे कब्ज़ा करलेते हैं जिस पर बुद्ध के चित्र बने होते थे और उसी को शिवलिंग का पूजा शुरु कर देते हैं | इसीलिए आजकल आप देखेंगे कि जितने भी बुद्ध स्तूप मिलते हैं वह बुद्ध की मूर्तियां होती है उसको प्रचारित करने लगते हैं | जबकि इनका अस्तित्व आठवीं सदी से ही है और उससे पहले भी वह बनते थे और वह बुद्ध मार्ग का हिस्सा था |
फिर इसी शैव मार्ग से 11 वीं सदी में
Ramanujam अपना एक अलग पंथ बना लेते हैं द्वैत वाद जिसे वैष्णो पंथ कहा गया और यह भी
करता है जो की प्रतिमाएं होती थी उसको यह विष्णु का अवतार बताने लगता है और इस तरह
से 11 वीं 12 वीं सदी में बुद्ध को विष्णु का अवतार करके उसको भी कबजाने लगते हैं |
और सारे बुद्धिस्ट मंदिरों पर उसको अवतार बताकर कब्जा कर लेते हैं | इस तरह से वैष्णव
पंथ अस्तित्व में आता है |
इसके बाद आता है शाक्त पंथ | वह भी इसी तरह का कार्य करते हैं वह भी बुध मार्ग में तारा देवी महिला बोधिसत्व थी उनकी मूर्तियों को और बुध की मूर्तियों को और उसके महाविहारओं को कब्जा करके इन्हीं को ही लहंगा चुनरी साया ब्लाउज पहना कर और शक्ति बना कर देना शुरू कर देते हैं तो इस तरह से आज का जो तथाकथित हिंदू धर्म उस ब्राह्मण धर्म स्थितियों में आता है आठवीं सदी के बाद 11 वीं सदी के बाद 12 वीं सदी के बाद जबकि वज्रयान आठवीं सदी से पूर्व था और उससे भी पहले हियान और महायान थे यानी कि इस अस्तित्व में भी ब्राह्मण धर्म से कहीं ज्यादा प्राचीन साबित होता है बुद्ध मार्ग |
Fact no 9 सोशल इंपैक्ट | Social Impact
जरा सोचिए जितने भी विदेशी ट्रैवलर्स आए तब उन्हें कहीं भी पूरे भारत में वेद का या रामायण महाभारत का इंपैक्ट नहीं देखा | उन्होंने जो देखा वह बुध मार्ग देखा आप पूरी फाहियान का यात्रा पढ़ लीजिए पांचवी सदी के, सातवीं सदी के व्हेनसांग और इत्सिंग की रचनाएं पढ़ लीजिए, यहां तक कि मेडिसिंस की इंडिका भी पढ़ लीजिए हालांकि उसकी मूल प्रति उपलब्ध नहीं है फिर भी कहीं भी ब्राह्मण धर्म का कोई जिक्र नहीं आएगा | उल्टी श्रमण परंपरा की बात आएगी जो कि बुधवार के अनुयायियों की थी | लेकिन 11 वीं सदी में जब अलबरूनी आते हैं तब ब्राह्मणवाद की झलक देखने को मिलती है | और अल बिरूनी यह भी लिखते हैं कि वेद मंत्र क्षत्रियों को तो ब्राह्मण पढ़ा देते थे लेकिन क्षत्रिय ब्राह्मण को नहीं पढ़ा सकता था | और वेद मंत्र अगर गलती से भी वैश्य शूद्र के कान में चला जाए या उन्हें उच्चारण कर लिया और यह बात अगर प्रमाणित हो जाए तो न्यायाधीश के पास उसे लेकर जाते थे और उसका जीव काट देते थे | तो देखिए 11 वीं सदी में भी वेद का यह था कि जो बहुसंख्यक वर्ग था वैश्य और शूद्र उसको पढ़ने का अधिकार नहीं था | उल्टी उच्चारण करने पर उसकी जीभ काट ली जाती है | यानी कि इसका इंपैक्ट पूरे भारत में तो था ही नहीं सिर्फ कुछ सीमित लोगों में था | और 11वीं सदी के पहले जो ट्रैवलर्स आए हैं उन्हें तो कहीं इसका जिक्र ही नहीं किया सोशल इंपैक्ट के रूप में सोशल इंपैक्ट के रूप में | Social Impact बुध मार्ग से ज्यादा प्रभावित है और बाजी मार ले जाता है उससे प्राचीन होने का |
Fact no 10 - ग्रंथ रचना
ब्राह्मण धर्म में बहुत सारे ग्रंथ
उपलब्ध है और सारे के सारे देवनागरी लिपि में लिखे गए हैं जो महज 1000 साल से भी कम
पुरानी है | बहुत सारे ग्रंथ उपलब्ध है हम लिपि में भी लिखे हुए मिल जाते हैं शिलालेखों
पर और बहुत सारे इनस्क्रिप्शंस पर | यहां भी धर्म ग्रंथ रचना में बुधवार की लिखी हुई
बातें ब्राह्मण धर्म से ज्यादा प्राचीन साबित होती है | यहां तक कि जो ब्राह्मण ग्रंथ
के रामायण महाभारत वेद और तरह-तरह के धर्म ग्रंथ है यह सारी किताबें भी बौद्ध मार्गियों
की लिखी हुई कथा कहानी और जातक कथाओं से चोरी की हुई साबित होती है | क्योंकि दशरथ जातक कथा यीशु से पूर्व में लिखी गई इसके सबूत अजंता की गुफाओं में आज भी ट्रेस में मिलते
हैं | लिखित भी मिलते हैं इसी तरह से शाम जातक कथा है जिसको श्रवण कुमार की कथा बना
रखा है ब्राह्मण धर्म में और जाता है घत जातक कथा है जिसके बाद में कृष्ण के नाम पर महाभारत
में चरित्र रखा है | तो जातक कथाएं हैं यीशु से पूर्व में मिलती है | और वही कहानियों
की किताब में सिर्फ कागज पर मिलती है और वह मात्र हजार साल से भी कम पुरानी है | तो
धर्म ग्रंथ रचना में भी साबित होता है कि ब्राह्मण ग्रंथ काफी नए हैं और बौद्धों की
रचनाओं की कॉपी पेस्ट करके उसका ब्राह्मणी करण करके उसी कहानियों को तोड़ मरोड़ करके
देवनागरी स्क्रिप्ट में काफी बाद में लिखे गए |
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